शिवरात्रि हर महीने में आती है लेकिन, महाशिवरात्रि का पर्व सालभर में एक बार ही आता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य देवों के देव महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता रहता है। लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? आइये जानते हैं :-
महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिवजी का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न ही अंत। यह भी बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। ब्रह्माजी शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। वहीँ दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह भगवान का रूप लेकर शिवलिंग का आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।
64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग
एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। जो की 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। यह दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यहां जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसका न तो आदि था और न ही अंत।
शिव और शक्ति का हुआ था मिलन
महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य देव का भजन करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिवजी जो की वैरागी थे, आज वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।
महाशिवरात्रि व्रत करने के लाभ
Maha Shivratri Vrat : महाशिवरात्रि व्रत अध्यात्म से जुड़े लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखता है। यह व्रत सांसारिक सुख-भोग की इच्छा रखने वाले और गृहस्थ जीवन बिताने वाले सभी भक्तों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। गृहस्थ आश्रम के लोग महाशिवरात्रि के व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती की वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। वहीं सिद्ध साधना करने वाले इसे शत्रु पर जीत के रूप में मनाते हैं। संतों और नागाओं (नागा साधु) के लिए शिवजी प्रथम गुरु और आदि गुरु हैं। महाशिवरात्रि का व्रत शिवभक्त अपने-अपने तरीके से रखते हैं।
कुंवारी कन्याओं के लिए महाशिवरात्रि व्रत करने के लाभ
इस व्रत को सभी भक्त जन रख सकते हैं। माना जाता है कि भगवान भोलनाथ जैसे वर की चाह में कुंवारी कन्याएं महाशिवरात्रि का व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से उन्हें बहुत अच्छा वर मिलता है। सुहागिन स्त्रियां भी शिवरात्रि के दिन व्रत रखती हैं। ऐसा करने से उनके पति का जीवन और स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहता है।
महाशिवरात्रि व्रत रखने से मिलती है नरक से मुक्ति
मान्यता है कि जो भी भक्त महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है, और उनके आत्मा की शुद्धि होती है। इस दिन जहां भी शिवलिंग स्थापित है, उस स्थान पर भगवान शिव का स्वयं आगमन होता है। इसलिए शिवजी की पूजा के साथ शिवलिंग की भी विशेष आराधना करने की आस्था है। शिवजी अपने भक्तों को सच्चे दिल से आशीर्वाद देते हैं। ऐसी मान्यता है की महाशिवरात्रि का व्रत रखने से व्यवसाय में वृद्धि और नौकरी में तरक्की मिलती है। महाशिवरात्रि के अगले दिन तिल, जौ और खीर आदि का दान देकर व्रत को समाप्त किया जाना चाहिए। जिससे महाशिवरात्रि के व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
प्रदोषकाल में करें पूजन
हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष काल सबसे शुभ बताया गया है। सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि प्रदोष काल कहलाती है। इस समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। धर्म ग्रंथों में 12 ज्योर्तिलिंगों का उल्लेख है। माना जाता है कि प्रदोष काल में ही सभी ज्योर्तिलिंगों का उद्भव हुआ था।
ऐसे करें व्रत की शुरुआत
माना जाता है कि महाशिवरात्रि के व्रत की शुरुआत त्रयोदशी से ही हो जाती है और इसी दिन से लोगों को शुद्ध सात्विक आहार लेना शुरू कर देना चाहिए। कुछ लोग तो इसी दिन से इस व्रत को शुरू कर देते हैं। इसके बाद चतुर्दशी की तिथि को पूजन करके व्रत करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन शिवजी को भांग, धतूरा, गन्ना, बेर और चंदन अर्पित किया जाता है। वहीं माता पार्वती को सुहागिन महिलाएं सुहाग का प्रतीक चूड़ी, बिंदी और सिंदूर अर्पित करती हैं। यदि आप उपवास करते हैं तो पूरे दिन फलाहार ग्रहण करें और नमक का सेवन न करें। यदि किसी वजह से नमक का सेवन करते हैं तो सेंधा नमक का सेवन करें।
महाशिवरात्रि व्रत में चारों पहर में शिव पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में ॐ नम: शिवाय का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हो, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है। चारों पहर में किए जाने वाले इन मंत्रों के जप से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अति प्रसन्न होते हैं।
- व्रत के नियममहाशिवरात्रि के व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है। यदि कोई बीमार है या फिर गर्भवती महिला हैं या बुजुर्ग हैं तो वह व्रत में फलाहारी नमक का प्रयोग कर सकते हैं।
- व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में निद्रा नहीं लेनी चाहिए और रात्रि में भी शिवजी का भजन करके जागरण करना चाहिए। इस दिन पति और पत्नी को साथ मिलकर शिवजी का भजन कीर्तन करना चाहिए। ऐसा करने से उनके संबंधों में मधुरता बनी रहती है।
- ऐसी मान्यता है कि शिवजी को खट्टे फलों का भोग नहीं लगाना चाहिए और सफेद मिष्ठान का प्रयोग करना चाहिए।
श्री महाशिवरात्रि व्रत की पूजन विधि एवं सामग्री
शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ‘ॐ नमः शिवायः‘ मंत्र से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रातःकाल ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
पूजा सामग्रीः-सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, पंच फल पंच मेवा, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन आदि।
व्रत व पूजा के मंत्रः- ॐ नमः शिवाय का जाप या मनन श्रद्धा व ध्यान से।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
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