कांतारा जो कि एक कन्नड़ फ़िल्म है। इसका अर्थ है एक रहस्यमयी जंगल। इस फ़िल्म को ऋषभ शेट्टी ने लिखा है और इसका निर्देशन भी ऋषभ शेट्टी ने ही किया है। इस फ़िल्म के लीड एक्टर भी इस फ़िल्म के निर्देशक ऋषभ ही है। इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर है विजय किरंगाडूर, होंबाले फिल्म्स। जिन्होंने केजीएफ बनाई थी।
कहानी
इस कहानी की शुरुआत होती है, कर्नाटक के समंदर के किनारे से। जहां एक गांव बसा है। इस गांव का नाम है कन्दपुरा। सदियों पहले वहाँ के राजा ने वहां पर रहने वाले आदिवासी लोगों को एक जगह भेंट स्वरूप प्रदान किया था। ताकि वे सभी आदिवासी लोग अपना घर और मन्दिर बना सकें। इसके बदले में उनके कुलदेवता राजा की रक्षा करते थे। कुलदेवता ‘पनजूरली’ गांव के लोगों और जंगल की सुरक्षा करते थे।
यह कहानी एक लोककथा है या फिर फ़िल्म के टैगलाइन के हिसाब से दन्तकथा। यह कई वर्षों से ऐसे ही चलता रहा। लेकिन अब राजा के परपोते के परपोते को वो जमीन जो कभी राजा ने आदिवासी लोगों को दान में दिया था। वापस चाहिए था क्योंकि वो जमीन बहुत कीमती है। इसी के साथ गांव के लोगों जंगल से जड़ी बूटियां लकड़ी काटना, शिकार करना ये भी सालों से चला आ रहा है। लेकिन इसी बीच एक फॉरेस्ट ऑफिसर आ जाता है। ऑफिसर गांव के लोगों को लकड़ी काटने और शिकार से मना करता है। इस वजह से उनके बीच भयंकर झगड़ा हो जाता है।
फ़िल्म की शुरुआत होती है शिवा (ऋषभ शेट्टी) से। शिवा के पिता ‘भूता कोला’ की प्रथा करते हैं। यह एक ऐसी प्रथा है जो हर कोई नहीं कर सकता। सिर्फ चुनिंदा लोग ही इस प्रथा को कर सकते हैं। इस प्रथा में भूता कोला करने वाला इंसान दैवीय भेष भूषा धारण करता है और नाच गाना करता है। इस दौरान उस इंसान के अन्दर देवता की आत्मा आ जाती है। अपने हीरो शिवा को ये सब पसन्द नही है और वो इन सब से दूर रहता है। शिवा कंबाला का खिलाड़ी है। कंबाला भैंसों की रेस होती है जो कि हर साल आयोजित की जाती है। शिवा इसमे बड़े जोश से हिस्सा लेता है।
इस फ़िल्म में इन सब की कहानी किस तरह से आगे बढ़ती है? अपने झगड़े को ये लोग किस तरह से सुलझाते हैं? शिवा को जो पसन्द नहीं वो उसका समना किस प्रकार से करता है? इन्हीं सब चीजों को लेकर ये कहानी आगे बढ़ती है।
शिवा के अपोजिट में हैं सप्तमी गौड़ा जिन्होंने लीला का किरदार निभाया है। इस फ़िल्म में शिवा की कुछ अश्लील हरकतें हैं, जैसे कि छुप कर नहाते हुए देखना। शिवा की हरकतें बताती हैं कि वह कितना ओछा इंसान है। हीरो को हर वक्त अपने माँ से डांट खानी पड़ती है लेकिन जब जरूरत होती है तो वह अपने लोगों के साथ भी खड़ा होता है।
इस फ़िल्म में छुआ छूत को भी दिखाया गया है। इस फ़िल्म में ऑफिसर के रोल में हैं, किशोर जिन्होंने कमाल का काम किया है। कांतारा फ़िल्म के सिनेमाटोग्राफर अरविंद कश्यप हैं। जिन्होंने जंगल के सीन को बहुत ही बेहतरीन तरीके से पेश किया है। इस फ़िल्म को म्यूजिक अजनीश लोकनाथ ने दिया है जो कि फोक और रॉक का एक बढ़िया मिश्रण है। फिल्म के एक्शन को कोरियाग्राफ़ किया है विक्रम मोर ने। विक्रम मोर दो बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुके हैं। इस फ़िल्म में बहुत धांसू एक्शन दिखाया गया है।
इस फ़िल्म को देखकर आपको लगेगा कि फ़िल्म मेकर्स ने अपनी जान लगा दी है। आज के इस रीमेक वाले दौर में जहाँ बॉलीवुड की फिल्में फ्लोप हो रही हैं। इस फ़िल्म की कहानी और अपीयरेंस देखते ही बनता है। यह कहानी लोगों से एकदम जहनी तरीके से जुड़ी हुई है। इस फ़िल्म में बहुत ही रिच कल्चर और हैरिटेज को दर्शाया गया है।
इस फ़िल्म में विजुअल अपीयरेंस को बहुत ही अद्भुत तरीके से पेश किया गया है। इसमे कई ऐसे सीन्स हैं जिनको देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे। एक्शन भी बहुत गज़ब का फिल्माया गया है। कभी कीचड़ तो कभी बारिश तो कभी छत पर। अगर बात करें क्लाइमेक्स की तो वाकई में क्लाइमेक्स तो देखते ही बनता है। अगर अभी तक आपने अभी तक नहीं देखा तो यह आपको देखना चाहिए।